रमजान का पवित्र माह शुरू होते ही नौनिहालों व बुजुर्गों ने रोजा रख , कोरोना संक्रमण बीमारी के खात्म...
रमजान का पवित्र माह शुरू होते ही नौनिहालों व बुजुर्गों ने रोजा रख , कोरोना संक्रमण बीमारी के खात्मे की अल्लाह से फरियाद*
( बबलू खान की कलम से✍️) शिवपुरी।---- हम बता दें इस वक्त पूरी दुनिया को रोना संक्रमण से जूझ रही है, इसी के चलते नन्हे मुन्ने बच्चों व बुजुर्गों ने मुल्क के लिए अमन चैन व कोरोना बीमारी का खात्मा कर नम आंखों से की दुआ। साथ ही मुस्लिम समुदाय का पवित्र माह रमजान शुरू हो गया है रमजान के पूरे महीने मुस्लिम धर्म के लोग अल्लाह की इबादत करते हैं।अकीकतमंद सुबह से शाम तक बिना कुछ खाए पिए रोजा रखते हैं ।लेकिन क्या रोजा वही होता है, जिसमें सिर्फ कुछ खाया पिया ना जाए ,नहीं रोजा सिर्फ भूखे प्यासे रहने का नाम नहीं होता। बल्कि रोजा जिस्म के हर आजा का होता है।
*सिर्फ भूखे प्यासे रहने का नाम ही नहीं होता रोजा, आपके जिस्म का हर आजा है रोजदार।*
क्या होता है रोजा?
रोजे के मायने सिर्फ यही नहीं है। कि इसमें सुबह से शाम तक भूखे प्यासे रहना होता है बल्कि , रोजा वह अमल है जो रोजगार को पूरी तरह से शुद्धीकरण का रास्ता दिखाता है। रोजा वो अमल है जो इंसान को बुराई करने से रोकता है। और अच्छाई के रास्ते पर चलने का रास्ता दिखाता है। महीने भर के रोजो के जरिए अल्लाह चाहता है। कि इंसान अपनी रोजाना की जिंदगी को रमजान की दोनों के मुताबिक गुजारने वाला बन जाए।
*सिर्फ खाने-पीने पर रोक का नाम नहीं रोजा।*
रोजा सिर्फ ना खाने या ना पीने का नहीं होता बल्कि, रोजा जिस्म के हर आजा का होता है ।इसमें इंसान के दिमाग का भी रोजा होता है ,ताकि इंसान को ख्याल रहे कि उसका रोजा है। तो उसे कुछ गलत बातें गुमान नहीं करनी। उसकी आंखों का भी रोजा होता है ताकि, उसे यह याद रहे कि रोजे की हालत में आंखों से कोई गुनाह ना हो ।उसके मुंह का भी रोजा है ताकि, वह किसी से भी कोई बुरे अल्फाज ना कहें। और अगर कोई उससे किसी तरह के बुरे अल्फाज कहे तो वह, उसे भी इसलिए माफ कर दे कि उसका रोजा है।
( बबलू खान की कलम से✍️) शिवपुरी।---- हम बता दें इस वक्त पूरी दुनिया को रोना संक्रमण से जूझ रही है, इसी के चलते नन्हे मुन्ने बच्चों व बुजुर्गों ने मुल्क के लिए अमन चैन व कोरोना बीमारी का खात्मा कर नम आंखों से की दुआ। साथ ही मुस्लिम समुदाय का पवित्र माह रमजान शुरू हो गया है रमजान के पूरे महीने मुस्लिम धर्म के लोग अल्लाह की इबादत करते हैं।अकीकतमंद सुबह से शाम तक बिना कुछ खाए पिए रोजा रखते हैं ।लेकिन क्या रोजा वही होता है, जिसमें सिर्फ कुछ खाया पिया ना जाए ,नहीं रोजा सिर्फ भूखे प्यासे रहने का नाम नहीं होता। बल्कि रोजा जिस्म के हर आजा का होता है।
*सिर्फ भूखे प्यासे रहने का नाम ही नहीं होता रोजा, आपके जिस्म का हर आजा है रोजदार।*
क्या होता है रोजा?
रोजे के मायने सिर्फ यही नहीं है। कि इसमें सुबह से शाम तक भूखे प्यासे रहना होता है बल्कि , रोजा वह अमल है जो रोजगार को पूरी तरह से शुद्धीकरण का रास्ता दिखाता है। रोजा वो अमल है जो इंसान को बुराई करने से रोकता है। और अच्छाई के रास्ते पर चलने का रास्ता दिखाता है। महीने भर के रोजो के जरिए अल्लाह चाहता है। कि इंसान अपनी रोजाना की जिंदगी को रमजान की दोनों के मुताबिक गुजारने वाला बन जाए।
*सिर्फ खाने-पीने पर रोक का नाम नहीं रोजा।*
रोजा सिर्फ ना खाने या ना पीने का नहीं होता बल्कि, रोजा जिस्म के हर आजा का होता है ।इसमें इंसान के दिमाग का भी रोजा होता है ,ताकि इंसान को ख्याल रहे कि उसका रोजा है। तो उसे कुछ गलत बातें गुमान नहीं करनी। उसकी आंखों का भी रोजा होता है ताकि, उसे यह याद रहे कि रोजे की हालत में आंखों से कोई गुनाह ना हो ।उसके मुंह का भी रोजा है ताकि, वह किसी से भी कोई बुरे अल्फाज ना कहें। और अगर कोई उससे किसी तरह के बुरे अल्फाज कहे तो वह, उसे भी इसलिए माफ कर दे कि उसका रोजा है।
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