ईसागढ़ कहां गए वह सावन के झूले और कजरी गीत सावन शुरू होते ही पेड़ों की डाल पर पढ़ने वाले...
ईसागढ़
कहां गए वह सावन के झूले और कजरी गीत
सावन शुरू होते ही पेड़ों की डाल पर पढ़ने वाले झूले और महिलाओं द्वारा गाई जाने वाली कजरी। अब आधुनिक परंपरा और जीवनशैली में विलुप्त हो गई है एक दशक पहले सावन शुरू होते ही गांव में कजरी की जुगलबंदी होती थी अब कहीं नजर नहीं आती है। घर की महिलाएं युवतियां कजरी गाते हुए झूले पर नजर आती थी। हम बता दें कि झूला झूलने के दौरान गाए जाने वाले मधुर गीत मन को सुकून पहुंचाने वाले होते है। यह परंपरा आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे ग्रामों में देखी जा सकती है
लेकिन अब आधुनिक समय में पुरुष महिलाएं किशोर किशोरियों और बच्चे वीडियो कंप्यूटर और मोबाइल मोहे में कैद हो गए हैं। जिसके चलते लोक गायन उपेक्षित हो गए हैं
ईसागढ़ से एसएस स्टार न्यूज़ बन के लिए कैमरामैन देवेंद्र कुशवाहा के साथ शरीफ खान की विशेष रिपोर्ट
COMMENTS