शासकीय कार्य में बाधा डालने पर आरोपियों पर एफ.आई.आर दर्ज अशोकनगर 30 मई 2019 नायब तहसीलदाशासकीय ख...
शासकीय कार्य में बाधा डालने पर आरोपियों पर एफ.आई.आर दर्ज
अशोकनगर 30 मई 2019
नायब तहसीलदाशासकीय खेमरिया द्वारा 30 मई को थाना नईसराय में शासकीय कार्य में बाधा डालने तथा मारपीट करने पर 4 व्यक्तियों के विरूद्ध एफ.आई.आर दर्ज कराई गई है। एफ.आई.आर में दर्ज विवरण के अनुसार नायब तहसीलदार के कथन अनुसार वे 30 मई को निजी मारूती कार से नईसराय आ रहे थे, तभी अजलेश्वर के पास रोड पर एक ट्रेक्टर ट्रॉली जो रेत भर कर ले जा रहा था। मैंने ट्रेक्टर रोककर ड्रायवर से रॉयल्टी की मांग की। ड्रायवर द्वारा रॉयल्टी नही बताई गई और ड्रायवर द्वारा किसी से मोबाईल पर बात की गई। मेरे द्वारा मौके पर ट्रेक्टर ट्राली जप्ती का पंचनामा बनाया जा रहा था तभी कार से तीन लोग आए और एक व्यक्ति जिसका नाम वीरेन्द्र सिंह रघुवंशी ग्रामपचलाना थाना ईसागढ़ निवासी हैं। मेरे हाथ से पंचनामा छुडाकर फाड दिया तथा बुरी बुरी गालियॉ देने लगे। चारो लोग मुझसे झगड़ा करने लगे और थप्पड से मारपीट की। वीरेन्द्र ने रोड किनारे एक लकडी उठाकर मेरे सिर पर मार दी। मैं अपने प्राण बचाकर गाडी में बैठा तो चारों बोले कि अब हमारी रेत की ट्रेक्टर ट्रॉली पकडी तो जान से खत्म कर देगें। आरोपियों के विरूद्ध धारा 353, 186, 332, 294, 506, 34 भा.दवि. का अपराध पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया।
समाचार क्रमांक 123/664/2019
पॉक्सो एक्ट : बच्चों को सुरक्षा की गारंटी
अशोकनगर 30 मई 2019
समाज में नैतिक आचरण का ह्रास होता दिख रहा है। सबसे दुखद है छोटे बच्चों के साथ अनाचार। इससे न केवल बच्चे और उसके परिवार को त्रासदी से गुजरना पड़ता है बल्कि पूरा समाज इस अपराध से शर्मसार होता है। भारतीय संविधान में विभिन्न अपराधों के लिए सजा का प्रावधान है किन्तु बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराधों के लिए कोई कानूनी प्रावधान नहीं थ। इसका एकमात्र कारण यह है कि हमारे समाज ने इस तरह के अपराध की कल्पना भी नहीं की थी। कालान्तर में बच्चों के साथ निरंतर बढ़ते अपराधों की बढ़ती संख्या को देखकर सरकार ने इस पर नियंत्रण पाने के लिए वर्ष 2012 में एक विशेष कानून बनाया।
प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस (पॉक्सो) एक्ट 2012 यानी लैंगिक उत्पीडन से बच्चों के संरक्षण का यह अधिनियम। बच्चों को सेक्सुअल हैरेसमेंट, सेक्सुअल असॉल्ट और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों, छेडखानी, बलात्कार और कुकर्म जैसे मामलों से सुरक्षा प्रदान करता है। वर्ष 2012 में बनाए गए इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है। जिसका कड़ाई से पालन किया जाना भी सुनिश्चित किया गया है। इस अधिनियम की धारा 4 में वो मामले संज्ञान में लिये जाते हैं, जिनमें बच्चे के साथ दुष्कर्म या कुकर्म किया गया हो। इसमें सात साल सजा से लेकर उम्र कैद और अर्थ दंड भी लगाया जा सकता है।
पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के अधीन वे मामले लाए जाते हैं जिनमें बच्चों को दुष्कर्म या कुकर्म के बाद गम्भीर चोट पहुँचाई गई हो। इसमें दस साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है और साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत वो मामले पंजीकृत किए जाते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग से छेडछाड़ की जाती है। इन धारा के आरोपियों पर दोष सिद्ध हो जाने पर पाँच से सात साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
पॉक्सो एक्ट की धारा 3 में पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट को भी परिभाषित किया गया है, जिसमें बच्चे के शरीर के साथ किसी भी तरह की हरकत करने वाले शख्स को कड़ी सजा का प्रावधान है। इसीप्रकार 18 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का यौन व्यवहार इस कानून के दायरे में आ जाता है। यह कानून लडके और लडकी को समान रूप से सुरक्षा प्रदान करता है। इस कानून के तहत पंजीकृत होने वाले मामलों की सुनवाई विशेष अदालत में होती है।
पास्को एक्ट में संशोधन
बारह वर्ष से कम उम्र की बच्चियों के साथ दुष्कर्म में फाँसी की सजा का प्रावधान तो पहले ही हो गया था, लेकिन आइपीसी में हुए संशोधन से यौन शोषण का शिकार होने वाले बालक छूट गए थे। अब बालकों को भी यौन शोषण से बचाने और उनके साथ दुराचार करने वालों को फाँसी की सजा का प्रावधान किया गया है। 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों (कोई भी - लडकी हो या लडकों) को यौन उत्पीडन से बचाने के बाल यौन अपराध संरक्षण कानून (पॉस्को) 2012 में संशोधन को 6 अगस्त 2018 को मंजूरी दी गयी है। संशोधित कानून में 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के साथ दुष्कर्म करने पर मौत की सजा तक का प्रावधान है।
पॉस्को एक्ट के प्रावधान
पॉस्को एक्ट में यौन शोषण की परिभाषा में यौन उत्पीडन, अश्लील साहित्य, सेक्सुअल और गैर सेक्सुअल हमले को शामिल किया गया है। एक्ट में भारतीय दंड संहिता 1860 के अनुसार सहमति से सेक्स करने की उम्र को 16 से बढ़ाकर 18 साल किया गया है। एक्ट के अनुसार अगर कोई व्यक्ति (बच्चा, युवा व बुजुर्ग सभी) किसी बच्चे यानी 18 साल से कम उम्र के बच्चे या बच्ची के साथ उसकी सहमति या बिना सहमति के कोई यौन कृत्य करता है तो यह पॉक्सो एक्ट के दायरे में आएगा। यदि पति या पत्नी में से कोई भी 18 साल से कम उम्र का है और वे आपस में भी यौन कृत्य करते हैं, तो यह भी अपराध की श्रेणी में आएगा और उस पर केस दर्ज हो सकता है।
इस एक्ट के तहत सभी अपराधों की सुनवाई एक स्पेशल कोर्ट में कैमरे के सामने होती है। एक्ट में कहा गया है कि सुनवाई के दौरान यह कोशिश होनी चाहिए कि पीड़ित के माता-पिता या वह जिस पर वह भरोसा करता है, मौजूद रहें। अगर अभियुक्त किशोर है, तो उसके ऊपर किशोर न्यायालय अधिनियम 2000 (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) के तहत केस चलाया जाएगा।
यदि पीड़ित बच्चा दिव्यांग है या मानसिक व शारीरिक रूप से कमजोर है, तो विशेष अदालत को उसकी गवाही को रेकॉर्ड करने या उसे समझने के लिए अनुवादक व विशेष शिक्षक की सहायता लेनी चाहिए। अगर आरोपी ने कुछ ऐसा अपराध किया है जो बाल अपराध कानून के अलावा अन्य कानून में भीमम अपराध है, तो उसे सजा उस कानून के तहत होगी, जो सबसे सख्त हो। इसमें खुद को निर्दोश साबित करने का दायित्व अभियुक्त पर होता है। इसके अलावा इसमें गलत आरोप लगाने, झूठी जानकारी देने व किसी की छवि को खराब करने पर भी सजा का प्रावधान किया गया है। ऐसे लोग जो गलत काम के लिए बच्चों का व्यापार करते हैं, वे भी इस कानून के दायरे में आते हैं।
अधिनियम में यह प्रावधान भी है कि यदि कोई शख्स ये जानता है कि किसी बच्चे का यौन शोषण हुआ है, तो इसकी रिपोर्ट नजदीकी थाने में देनी चाहिए। अगर वह ऐसा नहीं करता है, तो उसे 6 महीने की जेल और आर्थिक दंड की सजा मिल सकती है।
यह कानून बाल संरक्षक की जिम्मेदारी पुलिस को सौंपता है। इसमें पुलिस को बच्चे की देखभाल सहित अन्य जिम्मेदारियाँ निभानी होती हैं। इसके अलावा पुलिस की यह जिम्मेदारी भी बनती है कि वह मामले की जानकारी 24 घंटे के अंदर बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) को भी दे, जिससे सीडब्ल्यूसी बच्चे की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जरूरी कदम उठा सके। एक्ट में ये भी प्रावधान किया गया है कि केस की सुनवाई अदालत बंद कमरे में दोस्ताना माहौल में करे। बच्चे की पहचान गुप्त रखी जाए। पॉक्सो के तहत स्पेशल कोर्ट पीड़ित बच्चे को दी जाने वाली मुआवजे की राशि का निर्धारण कर सकता है। एक्ट में यह भी कहा गया है कि केस को यौन शोषण होने की तारीख से एक साल के अंदर निपटाया जाना चाहिए।
पॉस्को एक्ट में अपराधियों के लिए कड़े दंड का प्रावधान है। निश्चित रूप से इस कानून से बाल यौन उत्पीडन को रोका जा सकेगा। इसमें समाज की सहभागिता भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए क्योंकि यौन उत्पीडन का शिकार किसी भी परिवार का कोई भी बच्चा या बच्ची हो सकती है। ऐसे में हमारा दायित्व है कि हम सब मिलकर अपराध को रोकें और अपराधी को दंड दिलायें ताकि अपराधियों के मन में डर बना रहे।
समाचार क्रमांक 124/665/2019
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